Featureराष्ट्रीय

गंगा नदी के इकोसिस्टम में ऐतिहासिक कदम : तीन दशकों बाद गंगा नदी में छोड़े गए रेड-क्राउन्ड रूफ्ड टर्टल

दिल्ली। सदियों से भारतीय सभ्यता का अभिन्न अंग रही गंगा नदी अब अपने तटों पर नए जीवन की संभावनाओं को रोशन कर रही है। कभी लुप्तप्राय कछुओं की प्रजातियों का घर रहे गंगा के तट, अब जैवविविधता संरक्षण की दिशा में सकारात्मक बदलाव का प्रतीक बन गए हैं। यह परिवर्तन विशेष रूप से लुप्तप्राय रेड-क्राउन्ड रूफ्ड टर्टल की गंगा के पानी में वापसी से स्पष्ट है। यह एक ऐसी प्रजाति है जिसकी संख्या में पहले लगातार गिरावट देखी गई थी। गंगा के जल में यह नई आशा न केवल इन प्राचीन जीवों के लिए बल्कि सम्पूर्ण इकोसिस्टम की बहाली के लिए भी एक महत्वपूर्ण कदम है।

नमामि गंगे मिशन का प्रभाव
नमामि गंगे के सहयोग से, टीएसएएफआई परियोजना दल ने 2020 में हैदरपुर वेटलैंड कॉम्प्लेक्स (एचडब्ल्यूसी) में कछुओं की विविधता और प्रचुरता का विस्तृत मूल्यांकन किया और इसके बाद उत्तर प्रदेश में गंगा के तट पर प्रयागराज के पास नव निर्मित कछुआ अभयारण्य में पर्यावास मूल्यांकन का अध्ययन किया। एचडब्ल्यूसी के साथ किए गए अध्ययनों से 9 कछुओं की प्रजातियों की उपस्थिति का पता चला, जबकि प्रयागराज में 5 कछुओं की प्रजातियों के अप्रत्यक्ष साक्ष्य एकत्र किए गए। उपरोक्त तथा पूर्ववर्ती अध्ययनों में सबसे अधिक आश्चर्यजनक निष्कर्ष यह था कि रेड-क्राउन्ड रूफ्ड टर्टल (आरआरटी), बटागुर कचुगा की कोई भी व्यवहार्य संख्या या इंडिविजुअल को सम्पूर्ण गंगा में नहीं देखा गया है, न ही इसकी सूचना प्राप्त हुई है। परिणामों से पता चला कि यह पूरे उत्तर भारत, विशेषकर उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक संकटग्रस्त प्रजाति थी।

कछुओं के पुनर्वास का ऐतिहासिक प्रयास
26 अप्रैल, 2025 को राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य, उत्तर प्रदेश के भीतर और उसकी देखरेख में स्थित गढ़ैता कछुआ संरक्षण केंद्र से 20 कछुओं को सावधानीपूर्वक स्थानांतरित कर हैदरपुर वेटलैंड में छोड़ा गया। इन कछुओं की सुरक्षा और प्रवास पर नजर रखने के लिए उन्हें सोनिक उपकरणों से टैग किया गया था। पुनर्वास प्रक्रिया के लिए कछुओं को दो समूहों में विभाजित किया गया – एक समूह को हैदरपुर वेटलैंड में बैराज के ऊपर छोड़ा गया, जबकि दूसरे समूह को गंगा की मुख्य धारा में छोड़ा गया। इस दृष्टिकोण का लक्ष्य यह निर्धारित करना है कि कछुओं के पुनर्वास के लिए कौन सी विधि सबसे प्रभावी है।

आगे की राह: जैव विविधता को बहाल करना
यह पहल गंगा के इकोसिस्टम में एक ऐतिहासिक कदम है। मानसून के मौसम के दौरान, हैदरपुर वेटलैंड पूरी तरह से गंगा की मुख्य धारा से जुड़ जाएगा, जिससे कछुए अपनी गति से विचरण कर सकेंगे। अगले दो वर्षों तक इन कछुओं पर नज़र रखी जाएगी। यह ‘सॉफ्ट’ बनाम ‘हार्ड’ विमोचन रणनीति के बाद इस प्रजाति को गंगा में पुनः लाने का पहला प्रयास है। इसका उद्देश्य उत्तर प्रदेश वन विभाग के सक्रिय सहयोग से गंगा में इन प्रजातियों की संख्या को स्थायी तरीके से स्थापित करना है।

नमामि गंगे मिशन की सफलता का संदेश
इस महत्वपूर्ण पहल से न केवल कछुओं की प्रजाति का संरक्षण होगा, बल्कि उत्तर प्रदेश में इकोसिस्टम में भी सुधार होगा। गंगा संरक्षण के प्रयासों से पता चला है कि यदि सभी हितधारक मिलकर काम करें तो बड़ी चुनौतियों से भी पार पाया जा सकता है। नमामि गंगे मिशन पहल न केवल गंगा की सफाई बल्कि जैव विविधता और इकोसिस्टम को बहाल करने में भी एक प्रेरणा बन गई है।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button