हिन्दू धर्म में शादी के दौरान क्यों माना जाता है ध्रुव तारे को साक्षी ये है वजह...
हिंदू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने आकाश में सबसे पहला तारा ध्रुव तारा को ही माना था ध्रुव तारा उत्तर दिशा को दर्शाता है, इसलिए इसको उत्तर तारा के नाम से भी जाना जाता है पुराने जमाने में ध्रुव तारा देखकर ही दिशाओं का ज्ञान किया जाता है
हिंदू धर्म में विवाह के समय कई रीति-रिवाजों को निभाया जाता है, इनके पीछे कोई न कोई धार्मिक, वैज्ञानिक या ज्योतिष कारण जरूर छिपा होता है
इन रीति-रिवाजों में से एक है शादी के समय दूल्हा और दुल्हन को ध्रुव तारा दिखाया जाता है ये रिवाज हमेशा फेरे के बाद ही निभाया जाता है इसके पीछे कुछ मान्यताएं है
धार्मिक मान्यता के अनुसार, जिस तरह आसमान में ध्रुव तारा स्थिर होता है ठीक उसी तरह नवविवाहित दंपत्ति के जीवन में हमेशा सुहाग-प्रेम हमेशा स्थिर बना रहे साथ ही वे अपना सारा जीवन खुशहाल तरीके से व्यतीत करें
दूसरी मान्यता के अनुसार, ध्रुव तारे को शुक्र तारा भी माना जाता है इसको दिखाने का मतलब है कि पति- पत्नी के संबंध हमेशा मधुर बने रहें क्योंकि शुक्र मधुर संबंधों का प्रतीक माना जाता है पति-पत्नी दोनों ही ध्रुव तारे की तरह अक्षय और मधुर संबंधों का आशीष प्राप्त करें
प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, वर-वधु की आधी शादी संपन्न होने के बाद ही ध्रुव तारा दिखाया जाता है सात फेरों के बाद मंगलसूत्र पहनाकर मांग भरने की रस्म ही बचती है
इस बीच ध्रुव तारा दिखाने का तात्पर्य है कि पति-पत्नी अपने जीवन में स्थिरता लाएं और एक दूसरे के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह समझ कर उनका निर्वहन करें