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अन्याय कर कमाए हुए पैसों से आपका परिवार सुख भोगेगा लेकिन भुगतना आपको पड़ेगाः साध्वी हंसकीर्ति श्रीजी

रायपुर। दादाबाड़ी में आत्मोत्थान चातुर्मास 2025 के अंतर्गत चल रहे प्रवचन श्रृंखला में परम पूज्य श्री हंसकीर्ति श्रीजी म.सा. ने धर्मरत्न प्रकरण ग्रंथ का पठन कर रही हैं। इसी क्रम में शनिवार को उन्होंने कहा कि जब व्यक्ति के सामने पाप करने का अवसर आता है, तो उसका मन बड़ी सहजता और तत्परता से उसकी ओर आकर्षित हो जाता है। पाप में एक तात्कालिक सुख की झलक होती है, जो मन को भटकाने में बहुत सक्षम होती है। लेकिन जब धर्म का, पुण्य का, या आत्मकल्याण का समय आता है, तब वही मन अस्थिर हो जाता है, उसे एक जगह टिकने में कठिनाई होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि धर्म का मार्ग कठिनाइयों से भरा होता है और मनुष्य वर्तमान सुख की लालसा में इतना लिप्त होता है कि वह भविष्य की भलाई या आत्मिक उन्नति की ओर ध्यान नहीं दे पाता।

मनुष्य को यह समझना चाहिए कि जो दुख उसे धर्म के मार्ग पर चलते समय सहने पड़ते हैं, वे वास्तव में पुण्य के बीज होते हैं। यह दुख आत्मा को मजबूत बनाते हैं, उसे तपाते हैं और अंततः वह सच्चा सुख प्रदान करते हैं, जो किसी भी भौतिक वस्तु से कहीं अधिक मूल्यवान होता है। हमें दूसरों के वैभव, विलास और ऐश्वर्य को देखकर ईर्ष्या या लालच नहीं करना चाहिए। बल्कि, यदि हमें किसी की ओर देखना है, तो उनके सद्गुणों, उनकी मेहनत, उनके पुरुषार्थ और उनके जीवन में आए संघर्षों को देखना चाहिए। असली सुख तो केवल उन्हीं को प्राप्त होता है जो सच्चे मन से पुरुषार्थ करते हैं और पुण्य का मार्ग अपनाते हैं।

यदि आपने गलत मार्ग से, अन्याय और अनीति के द्वारा पैसा कमाया है, तो हो सकता है कि वह धन आपके परिवार को सारे ऐशो-आराम और भौतिक सुख दे दे। आपका परिवार उस धन से विलासिता से जीवन व्यतीत करेगा, हर सुविधा का लाभ उठाएगा। लेकिन आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि उस धन से जुड़े पापों का फल अंततः आपको ही भुगतना पड़ेगा। उस अनैतिक धन के पीछे जो अधर्म छिपा है, उसका भुगतान न कोई और करेगा और न ही कोई बचा सकेगा दृ उसका हिसाब आपको ही देना पड़ेगा।

आज हम लोग ऐसे स्वार्थ के जाल में फंसे हुए हैं कि हम परमात्मा की वाणी को, उनके निर्देशों को, उनके सन्देश को समझना ही नहीं चाहते। हम केवल अपने लाभ और सुख में डूबे रहते हैं और यह भूल जाते हैं कि यह संसार अस्थायी है।

अब बात करते हैं घर की। आज आप जिस घर में रह रहे हैं, आप सोचते हैं कि वह आपका है। लेकिन सच्चाई यह है कि वह घर भी स्थायी रूप से आपका नहीं है। एक उदाहरण लीजिए दृ जब एक लड़की की शादी होती है, तो वह अपने माता-पिता का घर छोड़कर ससुराल चली जाती है। फिर वह अपने ससुराल को ही अपना घर मानने लगती है और मायके को एक विशेष जगह के रूप में याद करती है। लेकिन ज़रा सोचिए, क्या वह ससुराल वास्तव में उसका स्थायी घर है? और क्या मायका उसका हमेशा के लिए घर था?

इन प्रश्नों के उत्तर में ही छिपा है एक गहरा सत्य। हमारा सच्चा घर वह नहीं है जो ईंट-पत्थर से बना है, वह नहीं जो समय और परिस्थिति के अनुसार बदलता है। हमारा सच्चा घर वह है जहाँ आत्मा परमात्मा से जुड़ती है, जहाँ ईश्वर की उपासना होती है, जहाँ हमारे जीवन का उद्देश्य आत्मिक शांति और मोक्ष प्राप्त करना होता है।

इसलिए, यदि आप यह जानना चाहते हैं कि आपका असली घर कौन सा है, तो जान लीजिए दृ वह स्थान, वह वातावरण, वह मंदिर ही आपका सच्चा घर है जहाँ आप सच्चे मन से परमात्मा को स्मरण करते हैं, उनके चरणों में अपने मन को समर्पित करते हैं और उनके साथ आत्मिक संबंध स्थापित करते हैं।

अपने भौतिक घर को केवल एक पीहर की तरह मानिए दृ एक अस्थायी ठहराव का स्थान। लेकिन अपने दिल को, अपने जीवन को, अपने कर्मों को उस मंदिर से जोड़िए, जहाँ परमात्मा का वास हो। वही घर आपका सच्चा, शाश्वत और अंतिम ठिकाना है।

बच्चों के लिए विशेष रविवारीय शिविर आज
बच्चों का रविवारीय शिविर आज सुबह 10.30 से 11.30 तक आयोजित होगी, जिसमें मार्गानुसारी जीवन पर आधारित जीवन जीने की कला विषय पर क्लास ली जाएगी। पंकज कांकरिया ने बताया कि क्लास के बाद प्रश्नोत्तरी व प्रत्येक बच्चों के लिए स्वल्पाहार की व्यवस्था समिति की ओर से होगी।

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