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कुछ बोलने से पहले कई बार सोचना चाहिए, ऐसा न हो कि सामने वाला आपसे ज्यादा अनुभवी हो: साध्वी हंसकीर्ति श्रीजी

दादाबाड़ी में बच्चों के लिए विशेष रविवारीय शिविर और लघु नाट्य 'नियम का फल' का हुआ मंचन

रायपुर। दादाबाड़ी में आत्मोत्थान चातुर्मास 2025 के अंतर्गत चल रहे प्रवचन श्रृंखला में परम पूज्य श्री हंसकीर्ति श्रीजी म.सा. ने धर्मरत्न प्रकरण ग्रंथ का पठन कर रही हैं। इसी क्रम में रविवार को उन्होंने कहा कि बिना सोचे-समझे या विचार किए कुछ भी बोलना नहीं चाहिए क्योंकि हमारे शब्दों का प्रभाव गहरा हो सकता है। जब हम किसी विषय पर बोलते हैं, तो यह जरूरी है कि उस विषय की पूरी समझ और जानकारी हमारे पास हो। यदि हमें किसी विषय की पूरी जानकारी नहीं है या हमारी समझ सीमित है, तो उस पर बहुत अधिक बात करना उचित नहीं होता। ऐसा करने से हमारी बातों में गंभीरता और सच्चाई की कमी नजर आती है।

कई बार हम बिना पूरी जानकारी के किसी विषय पर अपनी राय व्यक्त कर देते हैं, लेकिन हमें यह नहीं पता होता कि हमारे सामने जो व्यक्ति है, वह उस विषय का जानकार या विशेषज्ञ भी हो सकता है। ऐसे में हमारी अधूरी जानकारी या गलत तथ्य हमारे सम्मान को कम कर सकते हैं और दूसरों के सामने हमारी छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए विवेकपूर्ण व्यवहार यही कहता है कि किसी भी विषय पर बोलने से पहले सोच-विचार करें और जहां जानकारी कम हो, वहां अधिक बोलने से बचें। चुप रहना और सीखने का प्रयास करना, वहां ज्यादा बुद्धिमानी का काम करता है।

साध्वी जी कहती हैं कि जीवन को इस प्रकार जीने की कोशिश करें कि वह स्वयं में एक प्रेरणा बन जाए। जब हम अपने जीवन को सुंदर, सच्चे मूल्यों से परिपूर्ण और संतुलित बनाते हैं, तब हमें दूसरों से तुलना करने की कोई आवश्यकता नहीं रहती। तुलना वहीं होती है जहां आत्म-संतोष की कमी होती है। अगर हमारा ध्यान अपने व्यक्तित्व, सोच, कर्म और विकास पर हो, तो हम हर दिन को बेहतर बनाने में सक्षम होते हैं।

हमें यह समझना चाहिए कि हर व्यक्ति की यात्रा अलग होती है, उसकी परिस्थितियाँ, संसाधन और लक्ष्य भी भिन्न होते हैं। इसीलिए किसी और से अपने जीवन की तुलना करना उचित नहीं है। जब हम अपने जीवन को अपने नैतिक मूल्यों, आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच से सुसज्जित करते हैं, तब वह अपने आप में सुंदर बन जाता है। एक ऐसा जीवन जिएं जो खुद को और दूसरों को प्रेरणा दे, न कि ईर्ष्या का कारण बने। यही सच्ची सुंदरता है।

बच्चों के लिए विशेष रविवारीय शिविर
बच्चों का रविवारीय शिविर आज सुबह 10.30 से 11.30 तक आयोजित हुआ, जिसमें मार्गानुसारी जीवन पर आधारित जीवन जीने की कला विषय पर क्लास हुई। शिविर में 70 बच्चों ने भाग लिया और विक्की गुरुजी ने उन्हें ज्ञान और खेलों में माध्यम से जीवन को समझाया। पंकज कांकरिया ने बताया कि क्लास के बाद प्रश्नोत्तरी हुई व प्रत्येक बच्चों के लिए स्वल्पाहार की व्यवस्था समिति की ओर से की गई।

लघु नाट्य ‘नियम का फल’ का हुआ मंचन
दादाबाड़ी में रविवार को प्रवचन के बाद सुबह 9.45 बजे से लघु नाट्य का मंचन होगा, जिसका विषय ‘नियम का फल’ था। नाट्य के माध्यम से यह दिखाने का प्रयास किया गया कि नियमों का पालन करने से हमें क्या फल मिल सकता है। मंच में एक नास्तिक सेठ और उसकी धर्मप्रेमी पत्नी के जीवनी पर प्रकाश डाला गया। कहानी कुछ ऐसी थी कि सेठ का झुकाव केवल व्यापार की ओर और सेठानी केवल धर्म करती थी। अक्सर इस बात को लेकर दोनों में खटपट होती रहती थी। एक दिन सेठानी ने कहा कि कब तक ऐसे व्यापार करते रहोगे, एक दिन तो आपको धर्म करना ही पड़ेगा, यह कहकर सेठानी उन्हें साध्वी जी के पास ले जाती है और उन्हें एक छोटा नियम दिल देती है। नियम यह होता है कि सेठ हर दिन सुबह घर से निकलकर गौ माता का दर्शन करेंगे। एक दिन सेठ उठे लेकिन उन्हें घर के आसपास कोई गाय नहीं दिखी, तो वे जंगलों की ओर निकल गए और अचानक से उनका पैर किसी चीज से टकराया, उन्होंने उसे उठाया तो वह पैसे थे और सेठ समझ गए कि यह उनके नियम का नतीजा है।

नाट्य के संयोजक श्री एसपीजी महिला विंग है। मंचन के माध्यम से यह बताया जाएगा कि छोटे-छोटे नियम का फल कितना व्यापक हो सकता है। प्रभु की आराधना से जीवन में होने वाले कल्याण को जीवंत करने की एक प्रयास नाट्य के माध्यम से किया जाएगा।

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