कृपाल सिंह ठाकुर सीहोर की इछावर तहसील में आर्य गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने एक साल पहले अपने गांव में सेन समाज की स्वामित्व वाली एक एकड़ जमीन खरीदी। कृपाल सिंह जमीन खरीदने के साथ ही इस बात से खुश है कि उन्हें तहसील के चक्कर नहीं काटना पड़े । आसानी से उनके जमीन का नामांतरण हो गया। सरकारी खाते में नाम चढ़ गया। नामांतरण प्रक्रिया का अनुभव सुनाते हुए वे बताते हैं कि लोगों को दो से तीन महीने तक लगातार तहसील के चक्कर काटना पड़ते थे। साइबर तहसील की व्यवस्था से अब लोग गांव से ही नामांतरण के लिए आवेदन भर देते हैं। उनका नाम खाते में दिखने लगता है। कृपाल सिंह ठाकुर की अपनी पांच एकड़ पुश्तैनी जमीन है जो पिताजी प्रहलाद सिंह ठाकुर के नाम है। पिताजी सौ साल करीब के हो गए हैं। जब उन्होंने अपने पिताजी को तहसील व्यवस्था के बारे में बताया कि तो वे भी जल्दी नामांतरण होने से खुश हुए.
सचिन पांचाल सीहोर के लालाखेड़ी गांव में रहते हैं। उन्होंने पास के खोकरी गांव में खेती की जमीन खरीदी। जमीन खरीदने के बाद सिर्फ 15 दिनों में नामांतरण की प्रक्रिया पूरी हो गई। वे सरकार की इस व्यवस्था से बेहद खुश हैँ। वे कहते हैं कि अब नामांकन के काम में जो बीच के लोग सक्रिय रहते थे अब उनका भी लगभग खात्मा हो गया है। वे बताते हैं की जमीन नामांतरण के आवेदन करने के तत्काल बाद ही खसरे के 12 नंबर कॉलम में उनका नाम चढ़ा हुआ दिखने लगा था। उन्होंने डाउनलोड कर लिया। बाद में उनके मोबाइल नंबर पर संदेश भी आया। इस प्रक्रिया के लाभ के बारे में सचिन पांचाल बताते हैं कि इससे जमीन खरीदी बिक्री में होने वाली धोखाधड़ी की संभावना लगभग समाप्त हो गई है। जिससे जमीन ली है वह अब दूसरों को जमीन नहीं बेच सकता। यदि ऐसा करता है तो जमीन के खरीदार का खाता अपलोड ही नहीं हो सकता। साइबर तहसील की व्यवस्था नहीं होती तो नामांतरण में कितने दिन लगते इस संबंध में सचिन बताते हैं कि 2 से 3 महीने का समय लगता लेकिन यह काम 15 दिन में ही हो गया।
इसी प्रकार मोहन लाल सीहोर तहसील के मुशकरा गांव में रहते हैं। उन्होंने पास के गांव में 15 डिसमिल जमीन पिछले साल खरीदी। वे बताते हैं कि पटवारी ने ऑनलाइन आवेदन करने की सलाह दी थी और इसके अलावा कुछ नहीं किया। सब काम सही समय पर हो गया। हमें नामांतरण की प्रक्रिया पूरी होने में 10 से 15 दिन का ही समय लगा। बार-बार तहसील के चक्कर काटने और अपना समय खराब करने की जरूरत नहीं पड़ी।
मध्य प्रदेश के राजस्व प्रशासन सुधार में साइबर तहसील व्यवस्था के माध्यम से नागरिकों के हित में अभूतपूर्व परिवर्तन होने जा रहा है।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मंशानुसार अब प्रदेश में राजस्व प्रकरणों का निराकरण अत्यंत कम समय में हो जाएगा। भू अभिलेखों में अमल के बाद भू-अभिलेखों एवं आदेश की सत्यापित प्रतिलिपि सम्बंधित पक्षकार को मिल सकेगी। अब अनावश्यक रूप से लंबित रहने वाले प्रकरणों का तकनीकी सहायता से कम समय में गुणवत्तापूर्ण निराकरण हो सकेगा। साइबर तहसीलों में औसत 15 से 17 दिनों का समय लग रहा है जो मैन्युअल प्रक्रिया में लगने वाले 60 दिनों की तुलना में महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
प्रदेश में हर साल नामांतरण के लगभग 14 लाख प्रकरण पंजीबद्ध होते हैं। इसमें से विक्रय विलेखों के निष्पादन के बाद नामांतरण के लिए दर्ज होने वाले प्रकरणों की संख्या लगभग 8 लाख रहती है। इसमें संपूर्ण खसरा के क्रय विक्रय से संबंधित लगभग 2 लाख अविवादित नामांतरण प्रकरण पंजीबद्ध किये जाते हैं।
इस प्रकार के प्रकरणों में 15 दिन की समय सीमा में बिना आवेदन दिए, पेपरलेस, फ़ेसलेस और ऑनलाइन नामांतरण और भू अभिलेख अद्यतन करने के लिए साइबर तहसील स्थापित की गयी है।
इस प्रकार संपूर्ण खसरा के क्रय विक्रय से संबंधित 2 लाख नामांतरण प्रकरणों का निराकरण साइबर तहसीलों से किया जा सकता है। इस प्रकार के प्रकरणों में त्वरित नामांतरण के अलावा भू-अभिलेख अपडेट होगा। क्षेत्रीय तहसील स्तर पर अविवादित प्रकरणों के निराकरण का भार कम होगा। साइबर तहसील की व्यवस्था के लिए राजस्व विभाग द्वारा मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता, 1959 में संशोधन कर धारा 13-क में साइबर तहसील के प्रावधान किए गए हैं। साइबर तहसील परियोजना की शुरुआत 01 जून 2022 से जिला सीहोर और दतिया में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में हुई। यह परियोजना राज्य के 12 जिलों – दतिया, सीहोर, इंदौर, सागर, डिण्डौरी, हरदा, ग्वालियर, आगर मालवा, श्योपुर, बैतूल, विदिशा, एवं उमरिया में की जा रही है। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के निर्देश अनुसार अब साइबर तहसील की व्यवस्था सभी जिलों में लागू हो रही है।
कैसे होगा काम?
साइबर तहसील में पंजीयन से नामांतरण तक की प्रकिया लागू कर दी गई है। साइबर तहसील को 4 अलग-अलग प्लेटफार्मों जैसे संपदा पोर्टल, भूलेख पोर्टल, राजस्व प्रकरण प्रबंधन व्यवस्था के पोर्टल से जोड़ दिया गया है।
सायबर तहसील में ऐसे प्रकरण निराकरण योग्य हैँ – संपूर्ण खसरा, जिसे विभाजित नहीं किया गया एवं ऐसी जमीन जो किसी प्रकार से गिरवी या बंधक ना रखी गई हो। पोर्टल पर पंजीयन करने के बाद और रजिस्ट्री के बाद रेवेन्यू पोर्टल पर स्वत केस दर्ज हो जाएगा। इसके बाद सायबर तहसीलदार द्वारा जाँच की जाएगी। सूचना के बाद इश्तेहार एवं पटवारी रिपोर्ट के लिए मेमो जारी किया जाएगा। इसके बाद आदेश पारित कर भू-अभिलेख को अपडेट किया जाएगा। दस दिन बाद दावा आपति प्राप्त नही होने पर ई मेल एवं वाट्सअप से आदेश दिए जायेंगे।
साइबर तहसील की विशेषतायें व लाभ
रजिस्ट्री के बाद बिना आवेदन किये नामांतरण का प्रखंड दर्ज हो जाता है।
इस प्रक्रिया में क्रेता और विक्रेता को नामांतरण के लिए तहसील कार्यालय में उपस्थित होने, पेशी पर आने की जरूरत ही नहीं।
संपूर्ण प्रक्रिया End to end Online, फैसलेस, एवं पेपरलेस है।
संपूर्ण प्रक्रिया, पारदर्शी है। मानवीय हस्तक्षेप नहीं है।
नोटिस क्रेता विक्रेता तथा ग्राम के सभी निवासियों को एसएमएस से मिलता है। नोटिस RCMS पोर्टल पर भी दिखता है।
ऑनलाइन आपत्ति दर्ज की जा सकती है।
अंतिम आदेश की कॉपी ईमेल या व्हाट्सएप के माध्यम से आवेदक को मिलेगी।
आदेश पारित होते ही स्वतः भू-अभिलेखों (खसरे/ नक़्शे) में सुधार हो जाता है।
आदेश एवं राजस्व अभिलेखों में अमल की प्रक्रिया सरकारी छुट्टियां को छोड़कर 15 दिनों में पूरी हो जाएगी है।
इस व्यवस्था ने क्षेत्राधिकार की सीमाओं को समाप्त कर दिया है।
इस प्रणाली से रियल टाइम में भू अभिलेख अपडेट किए जाने की अनूठी सुविधा उपलब्ध कराई गई है। इससे पटवारी का हस्तक्षेप नहीं रहेगा।
पटवारी रिपोर्ट ऑनलाइन जमा करने की सुविधा है।
कम से कम समय में निराकरण होगा। पहले इन प्रक्रियाओं में औसत 60 दिन लग जाते थे। साइबर तहसील में औसत 15 दोनों में ही यह प्रक्रिया पूरी हो जायेगी।
साइबर तहसील द्वारा पारित आदेश की पीडीएफ प्रति आवेदक को ईमेल/व्हाट्सएप से मिल जाएगी। इसकी प्रति RCMS पोर्टल पर भी अपलोड होगी।